Friday, September 21, 2007

Bhor ka geet

भोर का गीत
भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी! जब गिरी तन पर नवल पहली किरन हो गया अनजान चंचल मन-हिरन प्रीत की भोली उमंगों को लिए लाज की गद-गद तरंगों को लिएप्रात की शीतल हवा आ, अंग सुरभित कर गयी! प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी, झूमती डालें पहन नव आभरण, हर्ष-पुलकित किस तरह वातावरण,भर सुनहरा रंग, ऊषा कर गयी वसुधा नयी!

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